रागु धनासिरी महला ३ घरु ४ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हम भीखक भेखारी तेरे तू निज पति है दाता ॥ होहु दैआल नामु देहु मंगत जन कंउ सदा रहउ रंगि राता ॥१॥ हंउ बलिहारै जाउ साचे तेरे नाम विटहु ॥ करण कारण सभना का एको अवरु न दूजा कोई ॥१॥ रहाउ ॥
☬ हिंदी में अर्थ :- ☬ हे प्रभु! हम जीव तेरे (दर के) भिखारी हैं, तूँ सव्त्न्तर रह के सब को दातें (बख्शीश) देने वाला है। हे प्रभु! मेरे ऊपर दयावान हो। मुझ भिखारी को अपना नाम दो (ताकि) मैं सदा तेरे प्रेम के रंग में रंग रहूँ।१। हे प्रभु! में तेरे सदा काम रह वाले नाम से सदके कुर्बान जाता हूँ। तू सरे संसार जगत का आधार है; तू ही सब जीवों को पैदा करने वाला है को और (तेरे जैसा) नहीं है ॥१॥ रहाउ ॥
☬ English Translation:- ☬ Raag Dhanaasaree, Third Mehl, Fourth House: One Universal Creator God. By The Grace Of The True Guru: I am just a poor beggar of Yours; You are Your Own Lord Master, You are the Great Giver. Be Merciful, and bless me, a humble beggar, with Your Name, so that I may forever remain imbued with Your Love. ||1|| I am a sacrifice to Your Name, O True Lord. The One Lord is the Cause of causes; there is no other at all. ||1||Pause||
तिलंग महला ४ ॥ हरि कीआ कथा कहाणीआ गुरि मीति सुणाईआ ॥ बलिहारी गुर आपणे गुर कउ बलि जाईआ ॥१॥ आइ मिलु गुरसिख आइ मिलु तू मेरे गुरू के पिआरे ॥ रहाउ ॥ हरि के गुण हरि भावदे से गुरू ते पाए ॥ जिन गुर का भाणा मंनिआ तिन घुमि घुमि जाए ॥२॥
हे गुरसिख! मित्र गुरु ने (मुझे) परमात्मा की सिफत सलाह की बातें सुनाई हैं। मैं अपने गुरु से बार बार सदके कुर्बान जाता हूँ।१। हे मेरे गुरु के प्यारे सिख! मुझे आ के मिल, मुझे आ के मिल ।रहाउ। हे गुरसिख! परमात्मा के गुण (गाने) परमात्मा को पसंद आते हैं। मेने वेह गुण गाने, गुरु से सीखे हैं। मैं उन बड़े भाग्य वालो से बार बार कुर्बान जाता हूँ, जिन्होंने गुरु के हुकम को मीठा कर के माना है।२। हे गुरसिख! मैं उनके सदके जाता हूँ, जिन प्यारों ने गुरू का दर्शन किया है, जिन्होंने गुरू की (बताई) सेवा की है।3। हे हरी! तेरा नाम सारे दुख दूर करने के समर्थ है, (पर यह नाम) गुरू की शरण पड़ने से ही मिलता है। गुरू के सन्मुख रहने से ही (संसार-समुंद्र से) पार लांघा जा सकता है।4। हे गुरसिख! जो मनुष्य परमात्मा का नाम सिमरते हैं, वे मनुष्य (परमात्मा की हजूरी में) कबूल हो जाते हैं। गुरु नानक जी कहते हैं , नानक उन मनुष्यों से कुर्बान जाता है, सदा सदके जाता है।5।
Tilang, Fourth Mehl: The Guru, my friend, has told me the stories and the sermon of the Lord. I am a sacrifice to my Guru; to the Guru, I am a sacrifice. ||1|| Come, join with me, O Sikh of the Guru, come and join with me. You are my Guru’s Beloved. ||Pause|| The Glorious Praises of the Lord are pleasing to the Lord; I have obtained them from the Guru. I am a sacrifice, a sacrifice to those who surrender to, and obey the Guru’s Will. ||2||
अर्थ :- (सिफत सलाह की बानी विसरने से) जींद बार बार दुखी होती है, दुखी हो हो कर (फिर) और और विकारों में परेशान होती है। जिस सरीर में (भाव, जिस मनुख को) परभू की सिफत- सलाह के बाणी भूल जाती है, वह सदा विलाप में रहता है जैसे कोई कोड़ी मनुख।१। (सुमिरन से खाली रहने के कारण हम जो दुःख खुद बुला लेते है) उनके बारे में गिला-शिकवा करना व्यर्थ है, क्योंकि परमात्मा हमारे गिला करने के बिना ही (हमारे सारे रोगों का) कारण जानता है।१।रहाउ। (दुखों से बचने के लिए उस परभू का सिमरन करना चाहिए) जिस ने कान दिए, आँखे दी, नाक दिया, जिस ने जिव्हा दी जो जल्दी जल्दी बोलती है, जिस ने हमारे सरीर पर कृपा कर के जीवन को (सरीर में) टिका दिया, (जिस की कला से सरीर में) श्वास चलता है और मनुख हर जगह (चल -फिर और बोल चाल कर सकता है।२।॥ जितना भी माया का मोह है दुनिया की प्रीत है रसों के स्वाद हैं, यह सभी मन में विकारों की कालख ही पैदा करते हैं, विकारों के दाग़ ही लगाई जाते हैं। (सिमरन से परे रह कर विकारों में फंस कर) मनुष्य विकारों के दाग़ अपने माथे पर लगा कर (यहाँ से) चल पड़ता है, और परमातमा की हज़ूरी में इस को बैठने की जगह नहीं मिलती ॥३॥ (पर, हे प्रभू! जीव के भी क्या वस ?) तेरा नाम सिमरन (का गुण) तेरी मेहर से ही मिल सकता है, तेरे नाम में ही लग कर (मोह और विकारों के समुँद्र से) पार निकल सकते हैं, (इन से बचने के लिए) अन्य कोई जगह नहीं है। (निराश होने की जरूरत नहीं) अगर कोई मनुष्य (प्रभू को भुला कर विकारों में) डुबता भी है (वह प्रभू इतना दयाल है कि) फिर भी उस की संभाल होती है। हे नानक जी! वह सदा-कायम रहने वाला प्रभू सभी जीवों को दातां देने वाला है (किसी को विरला नहीं रखता) ॥४॥३॥५॥*
Dhanaasaree, First Mehl: My soul burns, over and over again. Burning and burning, it is ruined, and it falls into evil. That body, which forgets the Word of the Guru’s Bani, cries out in pain, like a chronic patient. ||1|| To speak too much and babble is useless. Even without our speaking, He knows everything. ||1||Pause|| He created our ears, eyes and nose. He gave us our tongue to speak so fluently. He preserved the mind in the fire of the womb; at His Command, the wind blows everywhere. ||2||
सोरठि महला ५ ॥ सरब सुखा का दाता सतिगुरु ता की सरनी पाईऐ ॥ दरसनु भेटत होत अनंदा दूखु गइआ हरि गाईऐ ॥१॥ हरि रसु पीवहु भाई ॥ नामु जपहु नामो आराधहु गुर पूरे की सरनाई ॥ रहाउ ॥ तिसहि परापति जिसु धुरि लिखिआ सोई पूरनु भाई ॥ नानक की बेनंती प्रभ जी नामि रहा लिव लाई ॥२॥२५॥८९॥
हे भाई! गुरु सरे सुखों का देने वाला है, उस (गुरु) की सरन में आना चाहिए। गुरु का दर्शन करने से आत्मिक आनंद प्राप्त होता है, हरेक दुःख दूर हो जाता है, (गुरु की शरण आ के) परमात्मा की सिफत-सलाह करनी चाहिए।१। हे भाई! गुरु की सरन आ के परमात्मा का नाम सुमीरन करो, हर समय सुमिरन करो, परमात्मा के नाम का अमिरत पीते रहा करो।रहाउ। परन्तु हे भाई! ( यह नाम की डाट गुरु के दर से) उस मनुख को मिलत है जिस की किस्मत में परमत्मा की हजूरी से इस की प्राप्ति लिखी होती है। वह मनुख सारे गुणों वाला हो जाता है। हे प्रभु जी! (तेरे दास) नानक की (भी तेरे दर पर यह) बेनती है-में तेरे नाम में अपनी सुरती जोड़े रखु।२।२५।८९।
Sorat’h, Fifth Mehl: The True Guru is the Giver of all peace and comfort – seek His Sanctuary. Beholding the Blessed Vision of His Darshan, bliss ensues, pain is dispelled, and one sings the Lord’s Praises. ||1|| Drink in the sublime essence of the Lord, O Siblings of Destiny. Chant the Naam, the Name of the Lord; worship the Naam in adoration, and enter the Sanctuary of the Perfect Guru. ||Pause|| Only one who has such pre-ordained destiny receives it; he alone becomes perfect, O Siblings of Destiny. Nanak’s prayer, O Dear God, is to remain lovingly absorbed in the Naam. ||2||25||89||
रागु धनासरी बाणी भगत कबीर जी की ੴ सतिगुर प्रसादि ॥राम सिमरि राम सिमरि राम सिमरि भाई ॥ राम नाम सिमरन बिनु बूडते अधिकाई ॥१॥ रहाउ ॥ बनिता सुत देह ग्रेह संपति सुखदाई ॥ इन्ह मै कछु नाहि तेरो काल अवध आई ॥१॥ अजामल गज गनिका पतित करम कीने ॥ तेऊ उतरि पारि परे राम नाम लीने ॥२॥ सूकर कूकर जोनि भ्रमे तऊ लाज न आई ॥ राम नाम छाडि अंम्रित काहे बिखु खाई ॥३॥ तजि भरम करम बिधि निखेध राम नामु लेही ॥ गुर प्रसादि जन कबीर रामु करि सनेही ॥४॥५॥
अर्थ: हे भाई! प्रभू का सिमरन कर, प्रभू का सिमरन कर। सदा राम का सिमरन कर। प्रभू का सिमरन किए बिना बहुत सारे जीव(विकारों में) डूब जाते हैं।1। रहाउ।पत्नी, पुत्र, शरीर, घर, दौलत – ये सारे सुख देने वाले प्रतीत होते हैं, पर जब मौत रूपी तेरा आखिरी समय आया, तो इनमें से कोई भी तेरा अपना नहीं रह जाएगा।1।अजामल, गज, गनिका -ये विकार करते रहे, पर जब परमात्मा का नाम इन्होंने सिमरा, तो ये भी (इन विकारों में से) पार लांघ गए।2।(हे सज्जन!) तू सूअर, कुत्ते आदि की जूनियों में भटकता रहा, फिर भी तुझे (अब) शर्म नहीं आई (कि तू अभी भी नाम नहीं सिमरता)। परमात्मा का अमृत-नाम विसार के क्यों (विकारों का) जहर खा रहा है?।3।(हे भाई!) शास्त्रों के अनुसार किए जाने वाले कौन से काम है, और शास्त्रों में कौन से कामों के करने की मनाही है– इस वहिम को छोड़ दे, और परमात्मा का नाम सिमर। हे दास कबीर! तू अपने गुरू की कृपा से अपने परमात्मा को ही अपना प्यारा (साथी) बना।4।5।
Raag Dhhanaasaree, The Word Of Devotee Kabeer JeeOne Universal Creator God. By The Grace Of The True Guru: Remember the Lord, remember the Lord, remember the Lord in meditation, O Siblings of Destiny. Without remembering the Lord’s Name in meditation, a great many are drowned. ||1|| Pause || Your spouse, children, body, house and possessions – you think these will give you peace. But none of these shall be yours, when the time of death comes. ||1|| Ajaamal, the elephant, and the prostitute committed many sins, but still, they crossed over the world – ocean, by chanting the Lord’s Name. ||2|| You have wandered in reincarnation, as pigs and dogs – did you feel no shame ? Forsaking the Ambrosial Name of the Lord, why do you eat poison ? ||3|| Abandon your doubts about do’s and dont’s, and take to the Lord’s Name. By Guru’s Grace, O Daas Kabeer Ji, love the Lord. ||4||5||