सोरठि महला ३ ॥ हरि जीउ तुधु नो सदा सालाही पिआरे जिचरु घट अंतरि है सासा ॥ इकु पलु खिनु विसरहि तू सुआमी जाणउ बरस पचासा ॥ हम मूड़ मुगध सदा से भाई गुर कै सबदि प्रगासा ॥१॥ हरि जीउ तुम आपे देहु बुझाई ॥ हरि जीउ तुधु विटहु वारिआ सद ही तेरे नाम विटहु बलि जाई ॥ रहाउ ॥
☬ हिंदी में अर्थ :- ☬ हे प्यारे प्रभु जी! (कृपा करो) जितना समय मेरे सरीर में प्राण हैं, मैं सदा तुम्हारी सिफत-सलाह करता रहूँ। हे मालिक-प्रभु! जब तूँ मुझे एक पल-भर एक-क्षण बिसरता है, मुझे लगता हैं पचास बरस बीत गए हैं। हे भाई! हम सदा से मुर्ख अनजान चले आ रहे थे, गुरु के शब्द की बरकत से (हमारे अंदर आत्मिक जीवन का) प्रकाश हुआ है।१। हे प्रभु जी! तू सवयं ही (अपना नाम जपने की मुझे समझ बक्श। हे प्रभु! में तुम से सदा सदके जाऊं, मैं तेरे नाम से कुर्बान जाऊं।रहाउ।
☬ English Translation:- ☬ Sorat’h, Third Mehl: Dear Beloved Lord, I praise You continually, as long as there is the breath within my body. If I were to forget You, for a moment, even for an instant, O Lord Master, it would be like fifty years for me. I was always such a fool and an idiot, O Siblings of Destiny, but now, through the Word of the Guru’s Shabad, my mind is enlightened. ||1|| Dear Lord, You Yourself bestow understanding. Dear Lord, I am forever a sacrifice to You; I am dedicated and devoted to Your Name. ||Pause||
☬ English Translation:- ☬ Soohee, First Mehl, Sixth House: One Universal Creator God. By The Grace Of The True Guru: Bronze is bright and shiny, but when it is rubbed, its blackness appears. Washing it, its impurity is not removed, even if it is washed a hundred times. ||1|| They alone are my friends, who travel along with me; and in that place, where the accounts are called for, they appear standing with me. ||1||Pause||
☬ हिंदी में अर्थ :- ☬ मैंने काँसे (का) साफ और चमकीला (बर्तन) घसाया (तो उस में से) थोड़ी थोड़ी काली सियाही (लग गई) । अगर मैं सौ वारी भी उस काँसे के बर्तन को धोलूँ (साफ करू) तो भी (बाहरों) धोने के साथ उस की (अंदरली) जूठ (कालिख) दूर नहीं होती ।१। मेरे असल मित्र वही हैं जो (सदा) मेरे साथ रहने, और (यहाँ से) चलते समय भी मेरे साथ ही चलें, (आगे) जहाँ (कीये कर्मो का) हिसाब माँगा जाता है ऊपर बे झिझक हो के हिसाब दे सकें (भावार्थ, हिसाब देने में कामयाब हो सकें) ।१।रहाउ ।
तिलंग महला ४ ॥ हरि कीआ कथा कहाणीआ गुरि मीति सुणाईआ ॥ बलिहारी गुर आपणे गुर कउ बलि जाईआ ॥१॥ आइ मिलु गुरसिख आइ मिलु तू मेरे गुरू के पिआरे ॥ रहाउ ॥ हरि के गुण हरि भावदे से गुरू ते पाए ॥ जिन गुर का भाणा मंनिआ तिन घुमि घुमि जाए ॥२॥
हे गुरसिख! मित्र गुरु ने (मुझे) परमात्मा की सिफत सलाह की बातें सुनाई हैं। मैं अपने गुरु से बार बार सदके कुर्बान जाता हूँ।१। हे मेरे गुरु के प्यारे सिख! मुझे आ के मिल, मुझे आ के मिल ।रहाउ। हे गुरसिख! परमात्मा के गुण (गाने) परमात्मा को पसंद आते हैं। मेने वेह गुण गाने, गुरु से सीखे हैं। मैं उन बड़े भाग्य वालो से बार बार कुर्बान जाता हूँ, जिन्होंने गुरु के हुकम को मीठा कर के माना है।२। हे गुरसिख! मैं उनके सदके जाता हूँ, जिन प्यारों ने गुरू का दर्शन किया है, जिन्होंने गुरू की (बताई) सेवा की है।3। हे हरी! तेरा नाम सारे दुख दूर करने के समर्थ है, (पर यह नाम) गुरू की शरण पड़ने से ही मिलता है। गुरू के सन्मुख रहने से ही (संसार-समुंद्र से) पार लांघा जा सकता है।4। हे गुरसिख! जो मनुष्य परमात्मा का नाम सिमरते हैं, वे मनुष्य (परमात्मा की हजूरी में) कबूल हो जाते हैं। गुरु नानक जी कहते हैं , नानक उन मनुष्यों से कुर्बान जाता है, सदा सदके जाता है।5।
Tilang, Fourth Mehl: The Guru, my friend, has told me the stories and the sermon of the Lord. I am a sacrifice to my Guru; to the Guru, I am a sacrifice. ||1|| Come, join with me, O Sikh of the Guru, come and join with me. You are my Guru’s Beloved. ||Pause|| The Glorious Praises of the Lord are pleasing to the Lord; I have obtained them from the Guru. I am a sacrifice, a sacrifice to those who surrender to, and obey the Guru’s Will. ||2||
रागु धनासरी बाणी भगत कबीर जी की ੴ सतिगुर प्रसादि ॥राम सिमरि राम सिमरि राम सिमरि भाई ॥ राम नाम सिमरन बिनु बूडते अधिकाई ॥१॥ रहाउ ॥ बनिता सुत देह ग्रेह संपति सुखदाई ॥ इन्ह मै कछु नाहि तेरो काल अवध आई ॥१॥ अजामल गज गनिका पतित करम कीने ॥ तेऊ उतरि पारि परे राम नाम लीने ॥२॥ सूकर कूकर जोनि भ्रमे तऊ लाज न आई ॥ राम नाम छाडि अंम्रित काहे बिखु खाई ॥३॥ तजि भरम करम बिधि निखेध राम नामु लेही ॥ गुर प्रसादि जन कबीर रामु करि सनेही ॥४॥५॥
अर्थ: हे भाई! प्रभू का सिमरन कर, प्रभू का सिमरन कर। सदा राम का सिमरन कर। प्रभू का सिमरन किए बिना बहुत सारे जीव(विकारों में) डूब जाते हैं।1। रहाउ।पत्नी, पुत्र, शरीर, घर, दौलत – ये सारे सुख देने वाले प्रतीत होते हैं, पर जब मौत रूपी तेरा आखिरी समय आया, तो इनमें से कोई भी तेरा अपना नहीं रह जाएगा।1।अजामल, गज, गनिका -ये विकार करते रहे, पर जब परमात्मा का नाम इन्होंने सिमरा, तो ये भी (इन विकारों में से) पार लांघ गए।2।(हे सज्जन!) तू सूअर, कुत्ते आदि की जूनियों में भटकता रहा, फिर भी तुझे (अब) शर्म नहीं आई (कि तू अभी भी नाम नहीं सिमरता)। परमात्मा का अमृत-नाम विसार के क्यों (विकारों का) जहर खा रहा है?।3।(हे भाई!) शास्त्रों के अनुसार किए जाने वाले कौन से काम है, और शास्त्रों में कौन से कामों के करने की मनाही है– इस वहिम को छोड़ दे, और परमात्मा का नाम सिमर। हे दास कबीर! तू अपने गुरू की कृपा से अपने परमात्मा को ही अपना प्यारा (साथी) बना।4।5।
Raag Dhhanaasaree, The Word Of Devotee Kabeer JeeOne Universal Creator God. By The Grace Of The True Guru: Remember the Lord, remember the Lord, remember the Lord in meditation, O Siblings of Destiny. Without remembering the Lord’s Name in meditation, a great many are drowned. ||1|| Pause || Your spouse, children, body, house and possessions – you think these will give you peace. But none of these shall be yours, when the time of death comes. ||1|| Ajaamal, the elephant, and the prostitute committed many sins, but still, they crossed over the world – ocean, by chanting the Lord’s Name. ||2|| You have wandered in reincarnation, as pigs and dogs – did you feel no shame ? Forsaking the Ambrosial Name of the Lord, why do you eat poison ? ||3|| Abandon your doubts about do’s and dont’s, and take to the Lord’s Name. By Guru’s Grace, O Daas Kabeer Ji, love the Lord. ||4||5||
हे भाई! गुरु की सरन आये बिना मनुख को बहुत दुःख चिपका रहता है, मनुख सदा ही भटकता फिरता है। हे प्रभु! हम (जीव, तेरे दर के) भिखारी हैं, तूँ हमेशां ही दातें देने वाला है, (कृपा कर, गुरु के) शब्द में जोड़ कर आत्मिक जीवन की समझ बक्श॥१॥ प्यारे प्रभु जी! (मेरे ऊपर) कृपा कर, तेरे नाम की डाट देने वाला प्रभु मुझे मिला, और (मेरी जिन्दगी का) सहारा अपना नाम मुझे दे॥रहाउ॥
Sorat’h, Third Mehl: Without serving the True Guru, he suffers in terrible pain, and throughout the four ages, he wanders aimlessly. I am poor and meek, and throughout the ages, You are the Great Giver – please, grant me the understanding of the Shabad. ||1|| O Dear Beloved Lord, please show mercy to me. Unite me in the Union of the True Guru, the Great Giver, and give me the support of the Lord’s Name. ||Pause||